न्यूज स्टॉपेज डेस्क
आधुनिक भारत की पहली शिक्षिका फातिमा शेख की जयंती 9 जनवरी को माही क्लासेस में मनाई गई। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि शिक्षाविद अब्दुल्लाह कैफ़ी ने कहा कि आज हम जिस शख्सियत को याद करने के लिए जमा हुए हैं, वो कौन हैं? वह हैं फातिमा शेख। ये वो नाम है जिन्होंने मुश्किल माहौल में शिक्षा के चिराग़ को जलाए रखा। यह उस दौर की बात है जब तालीम (शिक्षा) आमजन के लिए नहीं हुआ करती थी। फातिमा शेख, सावित्रीबाई फुले के मिशन की सबसे मजबूत सहयोगी और साथी शिक्षिका थीं। इस अवसर पर जमैतुल इराकीन के सह-सचिव गयासुद्दीन ने कहा कि बिना इल्म की ज़िंदगी बिना पर (पंख) के परवाज़ (उड़ान) के मानिंद (तरह) है। वहीं, शिक्षक सैय्यद इबरार हसन ने कहा कि फ़ातिमा शेख़ और सावित्री बाई फुले ने मुश्किल हालात में भी तालीम की शम्मा को बुझने नहीं दिया। मौके पर जमैतुल इराकीन के कार्यकारिणी सदस्य मोहम्मद ओसामा, मोहम्मद मतीउर रहमान एवं माही क्लासेस के सरवर इमाम खान, मोहम्मद सलाहउद्दीन आदि मौजूद थे।
बेहतर प्रदर्शन करने वाली छात्राओं को मिला पुरस्कार
इराकी उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल में जमैतुल इराकीन के सहयोग से इस सेंटर का संचालन हो रहा है। सेंटर द्वारा चलाए जा रहे प्री-बोर्ड मॉक टेस्ट 2024 में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने वाली छात्राओं को पुरुस्कार देकर उनका हौसला बढ़ाया गया। प्रथम श्रेणी के लिए दिव्या कुमारी, द्वितीय स्थान के लिए ज़िकरा नसीम और तृतीय स्थान के लिए सानिया परवीन को पुरुस्कार दिया गया।
कौन हैं फातिमा शेख
फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 पुणे महाराष्ट्र में हुआ था। वह एक भारतीय शिक्षिका थीं। जो ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी। वह आधुनिक भारत में सबसे पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक थीं। उन्होंने स्कूल में दलित बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, फातिमा शेख के साथ, दलित समुदायों में शिक्षा फैलाने का कार्य किया। 1 जनवरी सन 1848 में पुणे के बुधवार पेठ में जब पहला स्कूल खोला गया तो सावित्रीबाई के साथ फातिमा शेख भी पढ़ाती थीं। दलितों-वंचितों को शिक्षा दिलवाने के लिए उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ा। मगर सावित्रीबाई और फातिमा शेख लोगों के विरोध के सामने नहीं झुकीं।