न्यूज स्टॉपेज डेस्क
कम से कम खर्च में मरीजों को इलाज मिले। इसको लेकर ही अधिकतर मरीज रिम्स पहुंचते हैं। ताकि, अच्छे डॉक्टरों की टीम के साथ सस्ती इलाज भी मुहैया हो। रिम्स प्रबंधन ने भी अपने स्तर से प्रयास किया है कि लोगों को सस्ती इलाज की सुविधा मिले। यानि अस्पताल में जांच सस्ते दर पर होने के साथ जेनरिक दवा ही डॉक्टर लिखें ताकि गरीब आसानी से इलाज कर सकें। लेकिन रिम्स प्रबंधन अपने ही आदेश को कड़ाई से पालन नहीं करा पा रहा है। प्रबंधन ने भले ही अपने डॉक्टरों को जेनरिक दवा लिखने का निर्देश दे रखा है मगर अभी भी डॉक्टर मरीजों को ब्रांडेड दवा ही लिख रहे हैं। जेनरिक दवा नहीं लिखने का सीधा नुकसान मरीजों को हो रहा है। क्योंकि जेनरिक में जो दवा 16 रुपए में मिलती है, वहीं दवा ब्रांडेड होने पर एक सौ रुपए से अधिक कीमत चुकानी पड़ती है।
स्टॉक में नहीं रहती दवाएं
प्रबंधन का दावा है कि रिम्स के पास अधिकतर दवाएं स्टॉक में मौजूद रहती हैं। मगर नर्सिंग इंचार्ज के मांग पत्र नहीं आने के कारण वार्डों में मरीजों को दवा उपलब्ध नहीं हो पाती। दरअसल इसका खामियाजा भी सीधे सीधे मरीजों को ही भुगतना पड़ रहा है। डॉक्टर अगर पांच दवा लिखते हैं तो एक-दो दवा बाहर से ही खरीदनी पड़ती है। ब्रांडेड दवा होने के कारण कीमत भी अधिक चुकानी पड़ती है। दूसरी ओर रिम्स के मेडिसिन आईसीयू, मेडिसिन वार्ड, सर्जरी आईसीयू, न्यूरो और ऑर्थाे वार्ड में भर्ती मरीजों को दवा उपलब्ध नहीं हो पाती, अधिकतर मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ती है। दूसरी ओर देर रात में इलाज के लिए इमरजेंसी में पहुंचने वालों की परेशानी और अधिक बढ़ जाती है। डॉक्टर उन्हें दवा बाहर लाने भेजते हैं, जिसके कारण वे देर रात दुकान-दुकान भटकते हैं।